इंतज़ार शायरी


इंतज़ार शायरी 




इंतज़ार है हमे आपके आने का, वो नज़रे मिला के नज़रे चुराने का, मत पूछ ए-सनम दिल का आलम क्या है, इंतज़ारा है बस तुझमे सिमट जाने का. 



कब उनकी पलकों से इज़हार होगा; दिल के किसी कोने में हमारे लिए प्यार होगा; गुज़र रही है रात उनकी याद में; कभी तो उनको भी हमारा इंतज़ार होगा! 


तेरे इंतजार मे कब से उदास बैठे है तेरे दीदार में आँखे बिछाये बैठे है तू एक नज़र हम को देख ले इस आस मे कब से बेकरार बैठे है . 



 मोहब्बत का नतीजा, दुनिया में हमने बुरा देखा, जिन्हे दावा था वफ़ा का, उन्हें भी हमने बेवफा देखा. 



 जिंदगी हे सफर का सील सिला, कोइ मिल गया कोइ बिछड़ गया, जिन्हे माँगा था दिन रत दुआ ओमे, वो बिना मांगे किसी और को मिल गया. 



 आँखों मे आ जाते है आँसू, फिर भी लबो पे हसी रखनी पड़ती है, ये मोहब्बत भी क्या चीज़ है यारो, जिस से करते है उसीसे छुपानी पड़ती है   



 रोती हुई आँखो मे इंतेज़ार होता है, ना चाहते हुए भी प्यार होता है, क्यू देखते है हम वो सपने, जिनके टूटने पर भी उनके सच होने का इंतेज़ार होता है?  .. 



 याद तेरी आती है क्यो.यू तड़पाती है क्यो? दूर हे जब जाना था.. फिर रूलाती है क्यो? दर्द हुआ है ऐसे, जले पे नमक जैसे. खुद को भी जानता नही, तुझे भूलाऊ कैसे? 



 इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है, खामोशियो की आदत हो गयी है, न सीकवा रहा न शिकायत किसी से, अगर है तो एक मोहब्बत, जो इन तन्हाइयों से हो गई है..! 



 निकलते है तेरे आशिया के आगे से,सोचते है की तेरा दीदार हो जायेगा, खिड़की से तेरी सूरत न सही तेरा साया तो नजर आएगा 



 हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे, कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे, न होगे हम तो किसी ने ,तुम ये खुद कहोगे, मिलेगे बहुत से लेकिन कोई हम सा पागल ना होगा. 




 जीना चाहता हूँ मगर जिनदगी राज़ नहीं आती , मरना चाहता हूँ मगर मौत पास नहीं आती , उदास हूँ इस जिनदगी से , क्युकी उसकी यादे भी तो तरपाने से बाज नहीं आती .. 



किसी को मेरी याद आए एक अरसा हुआ, कोई है हैरान तो कोई तरसा हुआ. इस तरह खामोश हैं ये दिल ये आँखे मेरी, जैसे खामोश हो कोई बदल बरसा हुआ. 



 फूलो से सजे गुलशन की ख्वाइश थी हमें, मगर जीवनरूपी बाग़ में खिल गए कांटे. अपना कहने को कोई नहीं है यहाँ, दिल के दर्द को हम किसके साथ बांटे 



वो कह कर गया था मैं लौटकर आउंगा; मैं इंतजार ना करता तो क्या करता; वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से; मैं एतबार ना करता तो क्या क्या करता। 



इंतज़ार रहता है हर शाम तेरा यादें काटती हैं ले-ले के नाम तेरा मुद्दत से बैठे हैं तेरे इंतज़ार में कि आज आयेगा कोई पैगाम तेरा! 

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